Shop by Category
AVIKAL MAN

AVIKAL MAN

Sold By:   Anuradha Prakashan
₹305.00₹280.00

More Information

ISBN 13 9789391873004
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 115
Author Archana Bhardwaj Anu
Editor 2021
GAIN RE4NC8M2VSE
Category Poetry  
Weight 305.00 g

Frequently Bought Together

This Item: AVIKAL MAN

₹280.00


Sold by: Anuradha Prakashan

₹163.00


Sold By: Swadhyayam

₹509.00


Sold By: Garuda Prakashan

Choose items to buy together

ADD TO CART

Book 1
Book 2
Book 2

This Item: AVIKAL MAN

Sold By: Anuradha Prakashan

₹280.00

Chuni Hui Kavitayen

Sold By: Swadhyayam

₹163.00

Total Price : ₹280.00

Product Details

श्रीमती अर्चना भारद्वाज 'अनु' जी द्वारा रचित काव्य संग्रह आत्माभिव्यंजना , कुछ समय पहले मेरे पास एक फोन आया। दूसरी तरफ एक भद्र महिला थीं, “आप अर्चना जी बोल रही हैं ?” मैंने कहा, "जी हाँ, आप कौन ?” “जी मैं सुजाता सिंह छतीसगढ़ से बोल रही हूँ। पिछले हफ्ते मैंने रायपुर रेलवे स्टेशन के बुक स्टॉल से आपकी एक किताब 'अंतर्मन' खरीदी थी और उस पर आपका फोन नंबर देखकर आपको फ़ोन किया है। आपकी कवितायें और कहानियां मुझे बेहद पसंद आईं तो सोचा बता दूं ।” मैं हैरत में पड़ गई कि मेरी किताब छतीसगढ़ के रेलवे प्लेटफार्म के बुक स्टॉल पर कैसे पहुँची। अभी इसी उधेड़बुन में ही थी कि उन्होंने कहा, “आपकी किताब मैंने अपनी माँ को भेंट की तो वो उसे पढ़कर बेहद खुश हुई। मेरी माँ रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं और पढ़ने की शौक़ीन हैं। आपकी कविताएँ जैसे आज और कल, अनवरत बेनाम नदी, उम्र के साथ, संवेदना की ओर और कहानियों में इंतज़ार और उपहार उनको बहुत ही पसंद आईं और उन्होंने ही मुझे आपको शुभकामनाएँ देने को कहा है। मैंने उनका और उनकी आदरणीय माताजी का बारंबार धन्यवाद किया । बाद में मैंने अपने प्रकाशक श्री मनमोहन शर्मा से इसके बारे में पूछा तो वो बोले “हमने हीछ पुस्तकें वहाँ भेजी थी।” मुझे लगा इससे बड़ा कोई पुरस्कार नहीं हो सकता मेरे लिए। इसके बाद तो 2 संकलन और आ चुके हैं और धीरे-धीरे लिखने की रफ़्तार भी बढ़ती जा रही है, परंतु हर बार संकलन की अभिव्यंजना लिखते हुए मेरे शब्द गुंफित होने लगते हैं । शब्दों को पिरोना कठिन लगने लगता है और मेरे विचारों और उनकी सही अभिव्यक्ति में तारतम्य नहीं बैठ पाता, लिखने बहुत कुछ होता है पर शुरुआत का सिरा जाने कहाँ उलझ जाता है जो भावों को सामने लाने से रोकता है। पर उनके जैसे कई प्रशंसक मुझे लिखते रहते हैं और निरंतर प्रेरित करते रहते हैं जिससे मुझे हौसला मिलता है लिखने रहने का और आगे बढ़ने का । हमारी सोसाइटी में ही हमारी एक मामीजी हैं। एक दिन मिली तो मिलते ही गले लगाया और कहा कि “अभी तेरी ही किताब पढ़ रही थी, जब भी अकेली होती हूँ तो तेरी कोई किताब उठा लेती हूँ और पढ़ना शुरू कर देती हूँ तेरी कविताओं में कहीं न कहीं अपने मन के भाव ढूंढ लेती हूँ तो आत्मिक शांति मिलती है ।" बताइये इससे बढ़कर और क्या पुरस्कार मिलेगा मुझे ? बस यही करबद्ध प्रार्थना करती हूँ कि मामीजी दीर्घायु हों और मुझे ऐसे ही आशीर्वाद देती रहें । ऐसे ही मेरी एक शोभा आंटी है। मेरी सारी किताबों की लगभग सभी कविताएँ उनको याद हैं और उनके भाव उन कविताओं को लिखने के समय की मेरी मनः स्थिति का आकलन उन्होंने अच्छे से किया हुआ है। कितनी खुशी मिलती है इन सब बातों से जिनका मैं बयान नहीं कर सकती। जब कभी सोचती हूँ कि अब नहीं लिखूँगी तो कहीं न कहीं से कोई न कोई आकर मेरी विकलताओं से बाहर निकालकर पुनः मेरे मन को अविकल बना देता है और मैं फ़िर आगे की राह चल निकलती हूँ । सितंबर 2016 में मेरा पहला संकलन 'पारिजात मन' आया था और फ़रवरी 2020 तक ऐसे प्रकाशित संकलनों की संख्या 6 हो गई जिनके नाम भी परस्पर मन से जुड़े हुए हैं, पहला पारिजात मन, फ़िर क्रमशः आत्मन, अंतर्मन, अनुरागी मन, अद्वैत मन और अपराजित मन (हिंदी अकादमी, दिल्ली के सौजन्य से)। इस बीच, मेरा एक कहानियों का संकलन “कुछ अनकही कुछ मनकही" (इसमें भी मन शब्द है) भी जुलाई 2020 में प्रकाशित हो गया है और विशेष बात ये है कि इस संकलन की 200 प्रतियां भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने अपने विभिन्न पुस्तकालयों के लिए ली हैं। अब ये 'अविकल मन' सादर, सस्नेह व सप्रेम आपके समक्ष प्रस्तुत है । हर्ष की बात ये है कि मेरा नवीनतम काव्य संकलन 'अविरक्त मन' भी अब प्रकाशनार्थ तैयार ही है।
whatsapp