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ISBN 13 | 9789394369894 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Total Pages | 40 |
Author | Rashtraputra Sh. Kripasindhu |
Editor | 2023 |
GAIN | 8HKWZ79D59T |
Product Dimensions | 5.50 x 8.50 |
Category | Historical Books Package |
Weight | 100.00 g |
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Product Details
गुरुओं ने या शास्त्रों में जो बाताया जाता हैं वह एक सामान्य नियम हैं, बहुजन हिताय हैं। क्योंकि व्यष्टि व्यष्टि के लिए नियम नहीं देखा जाता है। हाँ, कुछ विशेष नियम भी होता है, वह अपवाद रूप में है। क्योंकि योग्यता के आधार पर विशेष नियम भी लागू होता है। वैदिक शास्त्रों की यही विशेषता हैं कि जो व्यक्ति जितना जितना योग्यता प्राप्त करता हैं वह उतना उतना मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। जैसे आपका गुरुदेव आपको आध्यात्मिक दिशा में आगे बढ़ने के लिए आपको मांसाहार भोजन को त्याग कर शाकाहारी भोजन लेने के लिए उपदेश दिया है, वैसे ही स्वामी विवेकानन्द जी के गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस नरेन्द्र को लक्षित करके कहा था, ‘अगर यह बालक अंग्रेज होटेल में गोमांस भी खाते है तो भी उनको अपवित्र कर नहीं पायेंगे, यह बालक इतना पवित्र है। एक बार बालक नरेन्द्र को परीक्षा करने के बाद उपस्थित सभी को कहा था- जिस दिन इस बालक को मालूम पड़ जायेगा कि वह कौन है और कितना उच्च अधिकारी है, उसी दिन मुहूर्त काल के लिए भी वह शरीर बन्धन में रहना सहन नहीं कर पायेंगे- सभी अपूर्णता के साथ इस जीवन को छोड़कर चले जायेंगे। स्वामी जी भी बीच-बीच में कहा करते थे, “शरीर के बारे में सोचना भी पाप है”। या फिर कहते थे शक्ति या सिद्धि लोक के सामने प्रकाश करना अच्छा नहीं हैं।