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Vijay Manohar Tiwari Book

Vijay Manohar Tiwari

About the Author

विजय मनोहर तिवारी ने पच्चीस साल प्रिंट और टीवी में खपाए हैं। खबरों की खंती में खुदाई का काम, जिससे टिकाऊ ज्यादा कुछ नहीं निकलता। लेकिन किताबों के हिंदी पाठकों की दरिद्रता के कारण चूल्हा जलाने के लिए मीडिया की मनरेगा का जाॅब कार्ड जरूरी था।
खबरों के सिरे पकड़कर भटकने के शौक में छह-सात किताबें निकलीं। इनकी बदौलत मिले पुरस्कार-सम्मान बक्सों में रखे हैं। सबसे बड़ा सम्मान उस कहानी को मानते हैं, जिसमें कथाकार कमलेश्वर ने उन्हें एक किरदार बनाकर पेश किया था।
यह बिजली के लिए बड़े बांध में डूबे एक कस्बे की दास्तान है, जिस पर टीवी के लाइव कवरेज पर केंद्रित किताब ‘हरसूद 30 जून’ साल 2005 में छपी थी। गैस हादसे में भोपाल में 15 हजार लाशें गिरी थीं, लेकिन लिखा न के बराबर गया। हादसे की पच्चीसवीं बरसी पर खबरों से ही निकली किताब है-‘आधी रात का सच।’ इसके अलावा ‘प्रिय पाकिस्तान’, ‘एक साध्वी की सत्ता कथा’ और ‘राहुल बारपुते’ दीगर किताबें हैं। ठहराव को खतरनाक मानते हैं इसलिए लगातार डोलते रहे हैं। भारत की सघन आठ परिक्रमाओं के दौरान ट्रेनों में लिखी किताब है-‘भारत की खोज में मेरे पाँच साल।’ दो-एक संस्करणों के बाद ये किताबें बाजार से लुप्त हैं। नश्वर संसार के सारे पते अस्थाई हैं। संपर्क के लिए ईमेल और आभाषी दुनिया है, लेकिन फेसबुक और ट्विटर पर तफरीह उतनी ही है, जितना सरकारी दफ्तरों में साहबों की मौजूदगी या शपथ के बाद सदन में माननीयों की पावन उपस्थिति। दो-तीन और किताबों ने उलझाया हुआ है। इनमें मीडिया के अनुभवों का जखीरा ज्वलनशील होगा। समय का हर टुकड़ा कीमती है। कौन जाने दुष्ट कोरोना कब घात लगा दे। काफिरों को अल्लाह बचाए...

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